घट भरा विचारों से-
कहने को कोई बात नहीं है
पर है भण्डार विचारों का
जिन्हें एक घट में किया संचित
कब गगरी छलक जाए
यह भी कहा नहीं जा सकता
पर कभी बेचैन मन इतना हो जाता है
कह भी नहीं पाता ठोकर लगते ही
छलकने लगता गिरने को होता
ऐसी नाजुक स्थिति में बहुत शर्म आती है
कहानी अनकही जब उजागर हो जाती है |
पर कब तक बातें मुंह तक आकर रुक जातीं
मन ही मन बबाल मचाती रहतीं
चलो अच्छा हुआ मन का गुबार निकल गया
फिर से मुस्कान आई है चहरे पर |
किसी ने सच कहा है स्पष्ट बोलो
मन से अनावश्यक बातों को निकाल फेंको
मन दर्पण सा हो साफ
तभी जीवन होगा सहज
भविष्य भी सुखमय बीतेगा |
आशा
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