बेआवाज लाठी में होती हैं दुश्वारियां ।
कभी सामने रखकर अपने तुम आईना
पूछ लेना क्या-क्या तुममें हैं खामियां
दर्प का रुख पर चश्मा लगाकर न बह
हवा देखना पहाड़ साधे है खामोशियाँ ।
शक्ल बदलेगी जिस दिन अपना गुमां
साथ अहबाब ना होंगे होंगी तन्हाईयाँ
गुरुर इतना भी अच्छा कब रूप-रंग का
उम्र भर कहाँ साथ दोस्त देतीं रानाईयां ।
दम्भ,मद-अहं से लबरेज मिज़ाज लहज़े
आबो-ए-हवा में देखना अपने वीरानियाँ
ये लाव-लश्कर कभी देंगे तुम्हें शिकस्त
रोना फ़ितरत पर कर याद मेहरबानियाँ
अहबाब--लोगबाग,मित्र,समूह
रानाईयां--सौन्दर्य , फ़ितरत --स्वभाव
शैल सिंह
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