दो क्षणिकाएँ
( १ )
देखिये गौर से अब गरीबी नहीं कहीं देश में
बहरूपियों की आदत गरीबी के चोले में है
अलहदी बना दिया है बी. पी. एल. कार्ड ने
उसपे आरक्षण की सौगात भी झोली में है ,
असाध्य बीमारी हुआ है आरक्षण का कोढ़
बौद्धिकता का स्तर खतरे की टोली में है
जिन्हें मिल जा रहा सब कुछ बैठे बिठाये
उनमें आ गया नक्शा अहंकार बोली में है ।
( २ )
कभी किसी का बुरा हम नहीं चाहते
इतना देना भगवन कि ईर्ष्या ना हो
महके चाहत के फूलों से जीवन मेरा
पंख उड़ानों को देना कि ईर्ष्या ना हो
सारे जग का पिता एक तूं ही ख़ुदा है
बस एक सी नजर हो कि ईर्ष्या न हो
तुम्हारी तराशी हुई हम भी तस्वीर है
कर चित्र इक सा उकेरे कि ईर्ष्या न हो ।
कर -हाथ
( १ )
देखिये गौर से अब गरीबी नहीं कहीं देश में
बहरूपियों की आदत गरीबी के चोले में है
अलहदी बना दिया है बी. पी. एल. कार्ड ने
उसपे आरक्षण की सौगात भी झोली में है ,
असाध्य बीमारी हुआ है आरक्षण का कोढ़
बौद्धिकता का स्तर खतरे की टोली में है
जिन्हें मिल जा रहा सब कुछ बैठे बिठाये
उनमें आ गया नक्शा अहंकार बोली में है ।
( २ )
कभी किसी का बुरा हम नहीं चाहते
इतना देना भगवन कि ईर्ष्या ना हो
महके चाहत के फूलों से जीवन मेरा
पंख उड़ानों को देना कि ईर्ष्या ना हो
सारे जग का पिता एक तूं ही ख़ुदा है
बस एक सी नजर हो कि ईर्ष्या न हो
तुम्हारी तराशी हुई हम भी तस्वीर है
कर चित्र इक सा उकेरे कि ईर्ष्या न हो ।
कर -हाथ
शैल सिंह
No comments:
Post a Comment