मुक्तक -
तेरे बिन
तेरे बिन
तुझको जीतूँ
लक्ष्य है मेरा, तुझसे जीत नहीं चहिए,
लक्ष्य है मेरा, तुझसे जीत नहीं चहिए,
तेरी जीत
में जीत हमारी, तेरी हार नहीं चहिए,
में जीत हमारी, तेरी हार नहीं चहिए,
तू मेरा प्रतिमान
किरन है, जो मैं सूरज हो जाऊँ,
किरन है, जो मैं सूरज हो जाऊँ,
तू मेरा सम्मान
किरन है, जो मैं सूरज हो जाऊँ,
किरन है, जो मैं सूरज हो जाऊँ,
तेरे बिन
उगने ढलने का भी, अधिकार नहीं चहिए,
उगने ढलने का भी, अधिकार नहीं चहिए,
तेरे बिन
जीने मरने का भी, अधिकार नहीं चहिए।
जीने मरने का भी, अधिकार नहीं चहिए।
4 comments:
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - रे मुसाफ़िर चलता ही जा पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
Waah...bahut khoob
वाह बहुत खूब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
साझा करने के लिए आभार।
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