रावन ने माँ सीता को चुराया ,
फिर भी उनका उसने सम्मान किया ।
अब इंसान ही इज्जत लूट लेता है ।
क लंक हम रावन को लगाते है,
अब का राम , सीता को बेचा देता है|
मर्यादा की बाते जो करते है
वही सब नीलम होता है|
कान्हा का प्रेम तो अनमोल था
अब तो तमाशा सरेआम होता है ।
रचनाकारप्रदीप तिवारी
2 comments:
बहुत सुन्दर
नई पोस्ट मैं
thank you sir
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