अमूल्य रत्न सा ----
अमूल्य रत्न सा मानव जीवन
बड़े भाग्य से पाया
सदुपयोग उसका न किया
फिर क्या लाभ उठाया |
माया मोह में फंसा रहा
आलस्य से बच न पाया
सत्कर्म कोई न किया
समय व्यर्थ गवाया |
भ्रांतियां मन में पालीं
उन तक से छूट न पाया
केवल अपना ही किया
केवल अपना ही किया
किसी का ख्याल न आया |
बड़े बड़े अरमां पाले पर
कोई भी पूरे न किये
केवल सपनों में जिया
यथार्थ छू न पाया |
अमूल्य रत्न को परख न पाया
समय भी बाँध न पाया
पाले मन में बैर भाव
पृथ्वी पर बोझ बढ़ाया |
आशा
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार...!
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सुखद सलोने सपनों में खोइए..!
ज़िन्दगी का भार प्यार से ढोइए...!!
शुभ रात्रि ....!
सच कहा है | सचमुच मानव अशरफुल मखलूकात (सभी रत्नों में स्वर्ण की भाँति)है |
जिंदगी की मकसद है क्या ?सुन्दर प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
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