अहसास
लगती सब से भिन्न
है जीवन का हिस्सा अभिन्न
मन में भरती रंग
जब भी मनोभाव टकराते
जोर का शोर होता
अधिकाधिक कम्पन होता
अस्तित्व समूचा हिलता
मन में तिक्तता भरता
तब कलरव नहीं भाता
कर्ण कटु लगता
विचार छिन्न भिन्न होते
एकाग्रता को डस लेते
यदा कदा जब भी
कोइ अहसास होता
बीता पल याद दिलाता
वे यादें जगाता
जब थे सब नए
नया घर वर नए लोग
बर्ताव भी अलग सा
था निभाना सब से
था कठिन परिक्षा सा
वह समय भी बीत गया
कोमल भावों से भरा घट
जाने कब का रीत गया
कठिन डगर पर चल कर
जितने भी अनुभव हुए
एक ही बात समझ में आई
है यथार्थ ही सत्य
यही पल मेरा अपना
यहीं मुझे जीना है
निस्पृह हो कर रहना है |
आशा
3 comments:
कोमल भावों से भरा घट
जाने कब का रीत गया
कठिन डगर पर चल कर
जितने भी अनुभव हुए
एक ही बात समझ में आई
है यथार्थ ही सत्य
यही पल मेरा अपना
यहीं मुझे जीना है
निस्पृह हो कर रहना है -बहुत भावपूर्ण खुबसूरत रचना
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my post कोल्हू के बैल
'दिल' को जब 'अहसास' गुदगुदाते हैं |
सहज ही कविता के छन्द उभर आते हैं !!
टिप्पणी हेतु आप लोगों को धन्यवाद |
आशा
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