आतंकवादी
कटुता ने पैर पसारे
शुचिता से कोसों दूर हुआ
अनजाने में जाने कब
अजीब सा परिवर्तन हुआ
सही गलत का भेद भी
मन समझ नहीं पाया
सहमें सिमटे कोमल भाव
रुके ठिठक कर रह गए
हावी हुआ बस एक विचार
कैसे किसे आहत करे |
धमाका करते वक्त भी
ना दिल कांपा ना हाथ रुके
ऐसी अफ़रातफ़री मची
मानवता चीत्कार उठी
फंसे निरीह लोग ही
हादसे का शिकार हुए
आहत हुए ,कई मरे
अनगिनत घर तवा़ह हुए
शातिरों की जमात का तब भी
एक भी बन्दा विदा न हुआ
शायद उन जैसों के लिए
ऊपर भी जगह नहीं
गुनाहों की माफी़ के लिए
कहीं भी पनाह नहीं |
आशा
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के "रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाजवाब | जय हो |
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
आशा
Post a Comment