अबीर,गुलाल,रंग की खेलें होली
आपस में सभी गले मिल जाएँ
प्रीत की इतनी मीठी भंग पियें
मन की सभी गिरह खिल जाएँ ।
पिस-पिस कर दिल की दरारें
कड़वाहटें पिलें ठंडई बनाकर
संबंधों की अटूट सी माला गुंथें
हम पक्के धागे में प्रेम पिरोकर ।
दुश्मन भी जलें देख-देख कर
क्यों ना अपना प्यार दिखा दें
हममें तुममें कोई रंज नहीं है
चलो अपनी यारी यार दिखा दें ।
अरे भींगने पर भी धुले नहीं जो
टह-टह गाढ़ा रंग चढ़ा दे बाकी
पीने पर भी इतना होश रहे जी
ऐसा झूमें जाम पिला दे साकी ।
शैल सिंह
आपस में सभी गले मिल जाएँ
प्रीत की इतनी मीठी भंग पियें
मन की सभी गिरह खिल जाएँ ।
पिस-पिस कर दिल की दरारें
कड़वाहटें पिलें ठंडई बनाकर
संबंधों की अटूट सी माला गुंथें
हम पक्के धागे में प्रेम पिरोकर ।
दुश्मन भी जलें देख-देख कर
क्यों ना अपना प्यार दिखा दें
हममें तुममें कोई रंज नहीं है
चलो अपनी यारी यार दिखा दें ।
अरे भींगने पर भी धुले नहीं जो
टह-टह गाढ़ा रंग चढ़ा दे बाकी
पीने पर भी इतना होश रहे जी
ऐसा झूमें जाम पिला दे साकी ।
शैल सिंह
2 comments:
बहुत ही गहरे रंगों और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
धन्यवाद सुषमा जी
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