सज संवर कर जब हुई तैयार वो ,
देखने खुद को लगी ले आइना
हम प्रतीक्षा में खड़े बेचैन है ,
और देखो, अब तलक वो आई ना
खुद से है या आईने से इश्क है,
बात अपनी समझ में ये आई ना
वो वहां पर और मै हूँ यंहां पर,
बहुत चुभती ,और कटे तनहाई ना
नहीं मुझको याद ऐसा कोई पल,
जब तुम्हारी याद मुझको आई ना
तरसते है तुम्हारे दीदार को,
खुली आँखें और दिल का आइना
आते ही जल्दी करोगी जाने की,
बात अपनी इसलिए बन पाई ना
इस तरह आओ कि जाओ ही नहीं,
जिस तरह पहले कभी तुम आई ना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
2 comments:
क्या बात है मदन मोहन जी...आपके आइना और आई ना ने तो चमत्कृत कर दिया.
dhanywaad shalini ji-dekhiye kavita padh kar aapki pratikriya aai naa
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