लुत्फ महफिल में तनहा मुफ़र्रह कहाँ
फिर भी नग़मा है गाया तुम्हारे लिए
सुनी रातें मिटाने को घर का अँधेरा
खूने दिल है जलाया तुम्हारे लिए
इश्क में तो मिलीं बस बरबादियाँ
सुकूने दिल है मिटाया तुम्हारे लिए \
वफा का सिला क्या मिला मेरे रब
खुद को मुफलिश बनाया तुम्हारे लिए
शिकवा करूँ क्या ज़माने जफ़ा की
जब जमाना भुलाया तुम्हारे लिए \
रास आती नहीं बेमज़ा ज़िंदगी
वक्त महरूम गंवाया तुम्हारे लिए
मोहब्बत के जितने सितम हैं दफ़न
इक फसाना बनाया तुम्हारे लिए \
आहटें याद की करतीं अठखेलियाँ
अना में गज़ल गुनगुनाया तुम्हारे लिए
मेरी गुमनामियों ने सितम ढाने वालों
मिट के शोहरत कमाया तुम्हारे लिए \
मुश्किल बयां हाल नाशाद-ए-दिल
दिल में तूफां मचाया तुम्हारे लिए
खौफ में कितनी है जिंदगी ये बशर
गम में खुद को डुबाया तुम्हारे लिए \
लब खामोश हैं ज़ब्त दिल की सदा
दास्तान-ए-दिल छुपाया तुम्हारे लिए
ज़ख्म की हर इबारत मिटा दी सनम
अश्क में तर नहाया तुम्हारे लिए \
मुझसे रुसवा चमन रूठी रुबाईयाँ
बज्म गमेंनज्म से सजाया तुम्हारे लिए
दिले नादां को दर्द की दवा चाहिए
जो ख़ाक में खुद मिलाया तुम्हारे लिए \
लुत्फ महफिल में तनहा मुफ़र्रह कहाँ
सुर में नग़मा है गाया तुम्हारे लिए \
मुफ़र्रह-आनंददायक ,हर्षवर्धक
मुफ़र्रह-आनंददायक ,हर्षवर्धक
अना -आकर्षण
4 comments:
भावो को संजोये रचना......
Sounds interesting, might have to take you up on that some other time. Looking forward to future updates! From Dont Be that guy
आप सबको धन्यवाद्
आप सबको धन्यवाद्
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