मन को भा गई सांवली सुरतिया मैं तो हुई बावरी सखी , जाने कब होगी उनसे प्यारी बतिया मैं तो हुई बावरी सखी । आते-जाते उनसे मुलाकात बस हुई आँखों-आँखों में ही सिर्फ बात बस हुई , सपनों में रोज-रोज मेरे आने है लगा रोम-रोम मेरा गुदगुदाने है लगा , जाग-जाग के बितायी सारी रतिया मैं तो हुयी बावरी सखी , जाने कब ....मन को .... । शाम से बैठी हूँ घर का खोल झरोखा इक झलक की चाह वो है सबसे अनोखा , धड़कनों को छेड़ा है नाज़ो अंदाज ने ख़ुश्बू की तरह छाया है जां ओ जहान में , डगर-डगर पर बिछायी दोनों अँखिया मैं तो हुई बावरी सखी , जाने कब ......मन को ......। पूछता ज़माना क्या हुआ है जानेमन नैना खोये-खोये चाल ढाल बांकपन , इक नजर के जादू की है ये दीवानगी दिल्लगी के माजरा की ये रवानगी , राजे दिल की छुपाई सबसे बतिया मैं तो हुई बावरी सखी , जाने कब .......मन को .......।
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