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Saturday, December 29, 2012
हम बस यही हैं चाहते
सिकुड़कर सुरक्षा के कवच में
नहीं बिल्कुल हम रहना चाहते
नजरिये सोच फितरत में अब
केवल बदलाव हैं लाना चाहते \
ना कड़ा भाई का हो कभी पहरा
परिजन सभी के चिंतामुक्त हों
ना पति बच्चों को फिकर कोई
अकेले हों कहीं भी भयमुक्त हों \
ना किसी अपराध का हो डर कहीं
न अश्लीलता,भद्दगी का घर कहीं
दिन हो या रात या गली रिक्त हो
हर नुक्कड़,राह निर्भय सिक्त हो \
न हो हावी किसी पर असभ्यता
लोक लाज हो हया में भव्यता
दिखे हर मर्द की आँखों में बस
निज माँ,बहन,बेटी सी मर्यादिता \
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