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Tuesday, November 27, 2012
''गीत ''
बंजर उर में प्रीत जगे जो गीत बन गए
जब से तुम सच्चे मेरे मनमीत बन गए।
उन्मद यौवन था ढला शाम सा
जिजीविषा कुम्हलाई -कुम्हलाई
प्रतिफल में केवल छली गयी रे
हर कलि थी आशा की मुरझाई।
सोई हसरत की कलियाँ फिर जाग गईं
जब से बांहें गले का स्वर्णाहार बन गईं ।
सुख दुःख की लड़ियाँ साथ लिए
टूटे नातों का मूक अभिशाप लिए
बढ़ रही अकिंचन थी जीवन पथ
पराजय का प्रतिक्षण ह्रास लिए।
दुर्गम राहों पर ढेरों पुष्प अवतरित हो गए
जब से उर मृदुल गंध उच्छ्वसित कर गए।
रच दिया रीति में क्वाँरे सपने
अंगों में रस घोल गयी पुरवाई
यौवन की बगिया महक उठी
रससिक्त पुनः हो गयी तरुणाई।
अनुराग तेरे,मेरे अधरों के संगीत बन गए
जब से वीराने मन को भी नवनीत कर गए।
निष्ठुर जग से शिकवा गिला नहीं
मिलने खोने का सिलसिला यही
मृदु प्रणय का पाकर नेह निमंत्रण
पुलक थिरकता मन का कण-कण।
इन्द्र धनुषी रंग बिखेरा अभिसिक्त हो गए
जब से कपोल पे गुदना मुखरित कर गए।
चमक रहा नभ का हर कोना
जनम-जनम का अपना होना
धड़कन में कुछ-कुछ बोल गयी
मनभावन मुस्कान है डोल गयी।
मन उपवन रीता सावन सुरभित हो गए
जब से स्नेह सुधा वर्षा सिंचित कर गए।
मधु बैनी सी गीत सुनाउंगी मैं
करके सोलह सिंगार मिलूंगी
प्रीत सागर से भरी मन मटकी
काली रातों में चाँदनी छिटकी।
हाथ छुड़ाकर हार जीवन के जीत बन गए
जब से सांसों के अमर बंधन हीत बन गए।
''शैल सिंह''
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