हो स्वागत कैसे लक्ष्मी का
अन्धकार ने घेरा है
तेल बाती लायें कहाँ से
महँगाई ने घेरा है
हर ओर उदासी छाई
कमर तोड़ महँगाई है
बाजार भरा पड़ा सामान से
पर धन परिसीमित करना है
चंद लोगों ने ही त्यौहार पर
कुछ नया खरीदा है
बाकी तो रस्म निभा रहे हैं
बेमन से पटाखे ला रहे हैं
बच्चों का मन रखने के लिए
गुजिया पपड़ी बने कैसे
मँहगाई की मार पड़ी है
खील बताशे तक मँहगे हैं
क्रेता का मुँह चिढ़ा रहे हैं
शक्कर की मिठास भी
कम से कमतर होने लगी है
हर चीज फीकी लगती है
जब भाव उसका पूछते हैं
मन को कैसे समझायें
देना लेना सब करना है
कहाँ-कहाँ हाथ रोकें
हर बात है समझ से परे
पसरे पैर मँहगाई के
गहरा घना अंधेरा है
फिर भी सब कुछ करना है
क्योंकि यहीं रहना है
हर त्यौहार की तरह
दीपावली भी
मन ही जायेगी
पर आने वाले दो माह का
बजट बिगाड़ कर जायेगी |
आशा
2 comments:
badhiya samayik rachana mishr ji ... badhai
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |दीपावली शुभ और मंगलमय हो |
आशा
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